Afghanistan Independence Day A Glorious History
अफगानिस्तान का स्वतंत्रता दिवस: 17 अगस्त का यह दिन अफगानिस्तान के लिए गर्व, साहस और संघर्ष का प्रतीक है। यह दिन 1919 की एंग्लो-अफगान संधि की याद दिलाता है, जब इस देश ने ब्रिटिश साम्राज्य की बेड़ियों को तोड़कर अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की। अफगानिस्तान की यह प्रेरणादायक कहानी हर उस व्यक्ति को गर्वित करती है जो इसे सुनता है। यह एक ऐसा देश है जिसने बार-बार विदेशी शक्तियों को चुनौती दी और अपनी माटी की रक्षा की। ऊंचे पहाड़ों, रेगिस्तानों और सिल्क रोड की गलियों में बसा यह देश हमेशा अपनी आजादी के लिए लड़ा है। हालांकि, वर्तमान में तालिबान का कब्जा अफगानिस्तान की आजादी और प्रगति के लिए नई चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।
एक देश का जज्बा
अफगानिस्तान का इतिहास उतना ही पुराना और समृद्ध है जितना कि इसके पहाड़ों की चोटियां। यह देश सिल्क रोड के महत्वपूर्ण मार्ग पर स्थित होने के कारण हमेशा से व्यापार और संस्कृति का केंद्र रहा है। सिकंदर से लेकर मंगोलों और मुगलों तक, कई साम्राज्यों ने इसकी धरती पर कब्जा करने की कोशिश की, लेकिन अफगान लोगों का जज्बा ऐसा था कि उन्होंने किसी के सामने घुटने नहीं टेके। उनकी यह अटल हिम्मत ही उनकी पहचान बन गई।
ब्रिटिश साम्राज्य का आक्रमण
19वीं सदी में जब ब्रिटिश साम्राज्य अपने चरम पर था, तब उसकी नजर अफगानिस्तान पर पड़ी। ब्रिटिश भारत पर कब्जा कर चुके थे और अब वे अफगानिस्तान को नियंत्रित करना चाहते थे ताकि रूस के बढ़ते प्रभाव को रोक सकें। इस भू-राजनीतिक संघर्ष को इतिहास में 'ग्रेट गेम' के नाम से जाना जाता है, जिसमें ब्रिटेन और रूस मध्य एशिया में वर्चस्व के लिए भिड़े थे। अफगानिस्तान इस खेल का केंद्र बन गया।
1839 में पहला आंग्ल-अफगान युद्ध हुआ। ब्रिटिश सेना ने काबुल पर कब्जा करने की कोशिश की, लेकिन अफगान लड़ाकों ने उनकी योजना को ध्वस्त कर दिया। ब्रिटिश सेना को काबुल से भागना पड़ा, और इस दौरान उनकी पूरी टुकड़ी को अफगान योद्धाओं ने मार गिराया। यह हार ब्रिटिश साम्राज्य के लिए इतनी शर्मनाक थी कि इसे इतिहास में एक बड़ी पराजय के रूप में दर्ज किया गया। इस युद्ध ने साबित किया कि अफगान लोग अपनी आजादी के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
गंडामक संधि: आधी आजादी की बेड़ियां
ब्रिटिश इतनी आसानी से हार मानने वाले नहीं थे। 1878 में दूसरा आंग्ल-अफगान युद्ध हुआ। इस बार ब्रिटिश सेना ने जीत हासिल की और 1879 में गंडामक संधि पर हस्ताक्षर हुए। इस संधि ने अफगानिस्तान को ब्रिटिश संरक्षित राज्य बना दिया। इसका मतलब था कि अफगानिस्तान अपने आंतरिक मामलों में आजाद था, लेकिन उसकी विदेश नीति पर ब्रिटिशों का नियंत्रण था। यह संधि अफगान लोगों को स्वीकार नहीं थी। यह उनके लिए आजादी नहीं, बल्कि एक नई तरह की गुलामी थी।
इस संधि के तहत अमीर याकूब खान ने ब्रिटिशों के साथ समझौता किया, लेकिन अफगान जनता ने इसे अपनी हार नहीं माना। 1880 में जब अमीर अब्दुर रहमान खान सत्ता में आए, तो उन्होंने देश को एकजुट करने का बीड़ा उठाया। अब्दुर रहमान को अफगानिस्तान का आधुनिक निर्माता कहा जाता है। उन्होंने न केवल जनजातियों को एकजुट किया, बल्कि ब्रिटिश प्रभाव को कम करने की कोशिश भी की। उनकी नीतियों ने अफगानिस्तान को मजबूत किया और आजादी की राह को आसान बनाया। लेकिन असली बदलाव का समय तब आया जब 1919 में अमानुल्लाह खान सत्ता में आए।
तीसरा आंग्ल-अफगान युद्ध: आजादी की जीत
1919 में अमानुल्लाह खान ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ तीसरा आंग्ल-अफगान युद्ध शुरू किया। उस समय ब्रिटिश पहले विश्व युद्ध से थक चुके थे। उनकी सेना कमजोर थी और भारत में स्वतंत्रता आंदोलन जोर पकड़ रहा था। अमानुल्लाह ने इसे सही मौका समझा। अफगान लड़ाकों ने पहाड़ों और घाटियों में छिपकर गुरिल्ला रणनीति अपनाई। उनकी तेज-तर्रार युद्ध शैली ने ब्रिटिश सेना को परेशान कर दिया।
यह युद्ध ज्यादा लंबा नहीं चला। मई 1919 में शुरू हुआ यह युद्ध तीन महीने में खत्म हो गया। ब्रिटिशों ने महसूस किया कि अफगानिस्तान को हराना उनके बस की बात नहीं है। आखिरकार 8 अगस्त 1919 को रावलपिंडी में एंग्लो-अफगान संधि पर हस्ताक्षर हुए। इस संधि ने अफगानिस्तान को पूर्ण स्वतंत्रता दी। अब न केवल आंतरिक बल्कि विदेश नीति भी अफगानिस्तान के अपने हाथ में थी। 17 अगस्त को इस जीत को पूरे देश में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया गया। लोग सड़कों पर उतरे, झंडे लहराए और आजादी का जश्न मनाया।
स्वतंत्रता दिवस का रंगारंग जश्न
अफगानिस्तान में 17 अगस्त का स्वतंत्रता दिवस बड़े उत्साह और गर्व के साथ मनाया जाता है। यह दिन अफगान लोगों के लिए उनकी हिम्मत, एकता और शान का प्रतीक है। काबुल की सड़कें राष्ट्रीय झंडे से सज जाती हैं। झंडे के काले, लाल और हरे रंग देश की आजादी, बलिदान और समृद्धि को दर्शाते हैं। काबुल के साथ-साथ हेरात, मजार-ए-शरीफ और कंधार जैसे शहरों में भी उत्सव का माहौल होता है।
इस दिन काबुल में बड़े समारोह आयोजित होते हैं। राष्ट्रपति भवन में ध्वजारोहण होता है और राष्ट्रपति देश को संबोधित करते हैं। वे आजादी के महत्व और भविष्य के लिए योजनाओं की बात करते हैं। सैन्य परेड में अफगान सेना अपनी ताकत और अनुशासन दिखाती है। लोग पारंपरिक कपड़े पहनते हैं। पुरुष सलवार-कमीज और टोपी में नजर आते हैं, जबकि महिलाएं रंग-बिरंगे परिधान पहनती हैं। खाने में कबाब, पलाव, बोरोआनी और आशक जैसे पारंपरिक व्यंजनों की खुशबू हर घर से आती है। परिवार एक साथ बैठकर भोजन करते हैं और आजादी की कहानियाँ साझा करते हैं।
अफगान संस्कृति का उत्सव
अफगानिस्तान की संस्कृति बेहद समृद्ध और विविध है। इसकी कविताएं, संगीत और नृत्य दुनिया भर में मशहूर हैं। स्वतंत्रता दिवस पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। कवि अपनी रचनाएं सुनाते हैं, जो देशप्रेम और संघर्ष की भावनाओं से भरी होती हैं। पारंपरिक नृत्य जैसे अट्टन और खट्टक का प्रदर्शन होता है, जो अफगान संस्कृति की जीवंतता को दर्शाता है।
स्कूलों में बच्चे नाटक प्रस्तुत करते हैं, जिनमें अमानुल्लाह खान और उनके सैनिकों की वीरता को दिखाया जाता है। कॉलेजों में बहस और सेमिनार होते हैं, जहां आजादी के बाद की प्रगति और चुनौतियों पर चर्चा होती है। संगीत समारोहों में रुबाब और तबला की धुनें गूंजती हैं, जो लोगों को देश के गौरवशाली अतीत से जोड़ती हैं। इस दिन बाजारों में रौनक होती है। लोग राष्ट्रीय झंडे, पारंपरिक कपड़े और हस्तशिल्प खरीदते हैं।
आजादी के बाद की प्रगति और चुनौतियाँ
1919 की आजादी के बाद अफगानिस्तान ने कई क्षेत्रों में प्रगति की। अमानुल्लाह खान ने देश को आधुनिक बनाने के लिए कई सुधार किए। उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा दिया, स्कूल और विश्वविद्यालय खोले और महिलाओं के अधिकारों के लिए कदम उठाए। सड़कें, रेलवे और बुनियादी ढांचे का विकास हुआ। लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं थीं। देश की भौगोलिक स्थिति और विभिन्न जनजातियों की मौजूदगी ने एकता को मुश्किल बनाया।
20वीं सदी में अफगानिस्तान ने कई युद्ध देखे। 1979 में सोवियत संघ का आक्रमण और उसके बाद तालिबान का प्रभाव देश के लिए कठिन दौर रहा। इन संघर्षों ने विकास को बाधित किया। फिर भी, स्वतंत्रता दिवस पर लोग इन चुनौतियों को याद करते हैं और भविष्य के लिए नई उम्मीदों के साथ आगे बढ़ते हैं। आज कई गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) अफगानिस्तान में स्कूल, अस्पताल और बुनियादी सुविधाएं बनाने में मदद कर रहे हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में प्रगति हो रही है, हालांकि अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है।
तालिबान का वर्तमान कब्जा: आजादी पर सवाल
2021 में तालिबान ने एक बार फिर अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। यह घटना देश के इतिहास में एक नया और जटिल अध्याय है। तालिबान के शासन ने स्वतंत्रता दिवस के उत्सव और देश की प्रगति पर कई सवाल खड़े किए हैं। तालिबान ने महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों पर कठोर प्रतिबंध लगाए हैं, जिनमें शिक्षा और सार्वजनिक जीवन में भागीदारी पर रोक शामिल है। स्कूलों में लड़कियों की पढ़ाई छठी कक्षा से आगे बंद कर दी गई है और महिलाओं को कई नौकरियों और सार्वजनिक गतिविधियों से वंचित कर दिया गया है। तालिबान का यह शासन अफगान लोगों की आजादी की भावना पर एक बड़ा आघात है, जिसके लिए उन्होंने 1919 में इतनी बड़ी लड़ाई लड़ी थी।
इसके अलावा, तालिबान शासन के तहत मानवाधिकारों का उल्लंघन, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदी और आर्थिक संकट ने देश को मुश्किल में डाल दिया है। कई लोग तालिबान के सख्त नियमों और हिंसा के डर में जी रहे हैं। फिर भी, स्वतंत्रता दिवस का महत्व कम नहीं हुआ है। यह दिन लोगों को उनके संघर्ष और बलिदान की याद दिलाता है। कई अफगान लोग, खासकर विदेशों में बसे समुदाय, इस दिन को मनाकर अपनी आजादी की भावना को जीवित रखते हैं और भविष्य में बेहतर अफगानिस्तान की उम्मीद करते हैं।
अफगानिस्तान की आजादी की कहानी
अफगानिस्तान की आजादी की कहानी सिर्फ उसके लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा है। 1919 की जीत ने दिखाया कि एक छोटा सा देश भी ताकतवर साम्राज्य को हरा सकता है। इस जीत ने भारत जैसे देशों में स्वतंत्रता आंदोलनों को प्रेरित किया। ब्रिटिश साम्राज्य की कमजोरी उजागर होने से भारत में आजादी की लड़ाई को बल मिला।
दुनिया भर में बसे अफगान समुदाय इस दिन को उत्साह के साथ मनाते हैं। अमेरिका, कनाडा, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले अफगान लोग सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं। वे पारंपरिक नृत्य जैसे अट्टन और खट्टक प्रस्तुत करते हैं, अफगान व्यंजन बनाते हैं और राष्ट्रीय झंडा लहराते हैं। सोशल मीडिया पर लोग तस्वीरें और वीडियो शेयर करते हैं, जो उनकी एकता और देशप्रेम को दर्शाते हैं।
अफगानिस्तान का स्वतंत्रता दिवस एक तारीख से कहीं ज्यादा है। यह हिम्मत, एकता और संघर्ष की भावना का प्रतीक है। 1919 में जब अमानुल्लाह खान ने ब्रिटिश साम्राज्य को हराया, तो दुनिया ने देखा कि एक छोटा सा देश भी इतिहास बदल सकता है। आज तालिबान के कब्जे के बावजूद, यह दिन अफगान लोगों के लिए उनकी आजादी और गर्व की याद दिलाता है। जब हम अफगानिस्तान की बात करते हैं, तो उसकी चुनौतियां तो नजर आती हैं, लेकिन उसका अटल जज्बा भी दिखता है। 17 अगस्त का यह दिन हर अफगान के लिए गर्व का पल है।
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